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मय-कदे ये जाम किसके नाम का है/ जंगवीर स‍िंंह 'राकेश'

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मय-कदे ये जाम किसके नाम का है
इन्तज़ाम-ए-मय-गुल-ए-गुलफ़ाम का है

क़ातिलाना हुस्न, नज़रें तौबा तौबा
क्या इरादा आज क़त्लेआम का है

खूब नश्शा और उस पे जाम पे जाम
हक़ अदा ये आखिरी इस शाम का है

कम से कम तू ख़्वाब में तो छोड़ दे यार
जो भी है ये मस‍'अला आराम का है

अपने ही कुछ काम आ जाता अगर 'तू'
फिर समझता आदमी तू काम का है !!