भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मरते-मरते न कभी आक़िलो-फ़रज़ाना बने / असग़र गोण्डवी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


मरते-मरते न कभी आक़िलो-फ़रज़ाना बने।
होश रखता हो जो इन्सान तो दिवाना बने॥

परतबे-रुख़ के करिश्मे थे सरे राहगुज़र।
ज़र्रे जो ख़ाक से उट्ठे, वो सनमख़ाना बने॥

कारफ़रमा है फ़क़त हुस्न का नैरंगे-कमाल।
चाहे वो शमअ़ बने, चाहे वो परवाना बने॥