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मरने के जब हज़ार बहाने थे मिरे पास / कुमार नयन

मरने के जब हज़ार बहाने थे मिरे पास
जीने के तब भी कुछ तो ठिकाने थे मिरे पास।

नाज़ुक मिजाज़ लोग थे क्या उनको सुनाता
कड़वी हक़ीक़तों के फ़साने थे मिरे पास।

दौरे-खिजां में भी मैं रहा यूँ ही सलामत
ख़ुशबू-ए-इश्क़ के जो ज़माने थे मिरे पास।

चुप था कि मेरे पास नये लफ्ज़ नहीं थे
जज़्बात सब के सब ही पुराने थे मिरे पास।

तुमने तो मुझ गरीब के घर को ही टटोला
दिल को टटलोते तो ख़ज़ाने थे मिरे पास।

हर बार दिल का अक्स रहा तीर के आगे
वरना बहुत अचूक निशाने थे मिरे पास।

पूरे नहीं हुए वो जवां फिर भी रही उम्र
सारे अधूरे ख़्वाब सुहाने थे मिरे पास।