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मरहूम ख़्वाबों की कब्रगाह पे फूल चढ़ाने आया है / मोहिनी सिंह
Kavita Kosh से
मरहूम ख़्वाबों की कब्रगाह पे फूल चढ़ाने आया है
वो सलीका अपनी वफ़ा की दिखाने आया है
मुझे बेआबरू तो किया था अजनबियों ने कहीं दूर
मोहल्ले में बेरिदाई के किस्से वो सुनाने आया है
देख अब ज़माने की नज़रों का सितारा बने मुझे
पलकें झुकाए देखो कैसे लूट ले जाने आया है
इससे भी बढ़कर गम हैं ज़माने में कई और
बेवफाई की ऐसी कैफ़ियत वो बताने आया है
मोहब्बत में जलती आँखों को अब जाके मिला सुकूँ
जब वो शर्मसार सा मेरी नफ़रत के निशाने आया है