भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मरहूम ख़्वाबों की कब्रगाह पे फूल चढ़ाने आया है / मोहिनी सिंह

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मरहूम ख़्वाबों की कब्रगाह पे फूल चढ़ाने आया है
वो सलीका अपनी वफ़ा की दिखाने आया है

मुझे बेआबरू तो किया था अजनबियों ने कहीं दूर
मोहल्ले में बेरिदाई के किस्से वो सुनाने आया है

देख अब ज़माने की नज़रों का सितारा बने मुझे
पलकें झुकाए देखो कैसे लूट ले जाने आया है

इससे भी बढ़कर गम हैं ज़माने में कई और
बेवफाई की ऐसी कैफ़ियत वो बताने आया है

मोहब्बत में जलती आँखों को अब जाके मिला सुकूँ
जब वो शर्मसार सा मेरी नफ़रत के निशाने आया है