मरीचिका / अश्वनी शर्मा
रेगिस्तान में पानी बहुत गहरा होता है
धरातल पर होती है
सिर्फ मरीचिका
मृग और मानुष दोनों ही
दौड़ते रहते हैं मरने तक
उस पानी की तलाश में
जो कहीं है ही नहीं
रेत को हमेशा दया आती है
इन दोनों की ऐसी
अज्ञानी और भोली मौत पर
रेत देती रहती है
पानी न होने के प्रमाण बार-बार
आंखों में रड़ककर
नहीं चेतते पर
मानुष या मृग
पानी की लुभावनी सम्मोहक
प्रतिछवि खींचती है लगातार
नहीं छोड़ पाते इस आकर्षण का
मानुष या मृग
पानी जीवन है
पानी अर्थपूर्ण है
पानी सम्मोहक है
पानी आकर्षण है
लेकिन पानी की प्रतिछवि दरअसल मौत है
ये नहीं जान पाता आदमी
आभास को पानी समझकर
रेगिस्तान में पानी के पीछे दौड़ता आदमी
ऐसे ही छला जाता है बार-बार
जीवन की चाह
सिर्फ मौत देती है
मरीचिका हंसती है
रेत विमूढ़ देखती है
कहती है
तू ढूंढ़ता रहा पानी
ये जानते हुए भी
कि रेगिस्तान में सच केवल रेत है
पानी हमेशा ही मरीचिका है।