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मरी मछलियों के शरीरों की तलाश में / रुद्र मुहम्मद शहीदुल्लाह / अशोक भौमिक

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तुम्हे खड़े रहना ही होगा इस गहरे बुरे-वक़्त में
शरीर मुरझाना चाहेगा , आलस-आतंक में ,
आँखों के सामने कौंधेगी उबकाई की तलवार ,
दोज़ख का धुरन्धर दरोगा तुम्हे राह दिखना चाहेगा —

तुम्हे खड़े रहना ही होगा बाढ़ की ओर मुखातिब ।
झर जाएँगी पत्तियाँ, फूल नहीं खिलेंगे, जड़ों का पानी सूख जाएगा
ठुमक कर नहीं चलेगा बच्चा, बाती न जलेगी घरों में
मटमैला कोहरा, जाल फैला देगा मस्तिष्क की हर कोशिका पर
कमज़ोरी दबोच लेगी फेनिल नदी के शरीर को
दोनों तटों पर उभर आएगा विषाद सूनेपन का रेगिस्तान

बहाव थम जाएगा, राह बदल लेगा मेहमान चिड़ियों का झुण्ड
मरी मछलियों के शरीर के तलाश में जुटेगी मक्खियाँ और कौवे
मुहब्बत से बढ़े दोस्त के हाथ में अविश्वास का चाकू
ख़ूबसूरत मुझौटे के पीछे ज़हरीले दो दाँत
अन्धेरे के कीड़ें चाट जाएँगे माँस, मज्जा, मगज,
लम्बी रातों में, साथ न होगी प्रिय आग की रौशनी
फिर भी, तुम्हे खड़े रहना ही होगा इस बुरे वक़्त में ।
पत्ते झर जाएँगे, बच्चें मुस्कुराएँगे नहीं, रेत से ढँक जाएगी नदी
मरी मछलियों के शरीरों को तलाशती मक्खियाँ घर आएँगी ।

मूल बांग्ला से अशोक भौमिक द्वारा अनूदित