भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मर्क़जे-हर निगाह बन जाओ / राजेंद्र नाथ 'रहबर'
Kavita Kosh से
मर्क़जे-हर निगाह बन जाओ
दोस्तो ख़िज़्रे-राह बन जाओ
थाम लो हाथ बे सहारों का
उन की जाए-पनाह बन जाओ
जिस में आ कर मिलें सभी राहें
तुम वही शाहराह बन जाओ
झूट से तोड़ कर सभी रिश्ते
एक सच्चे गवाह बन जाओ
बे-हिसी से न वासिता रखना
आह बन जाओ वाह बन जाओ
हक़ परस्ती के, हक़ शनासी६ के
दिल से तुम खै़र-ख्व़ाह बन जाओ
सब से बढ़ कर चमक दमक रक्खो
तुम सितारों में माह बन जाओ
जो सभी दुश्मनों पे भारी पड़े
हिन्द की वो सिपाह बन जाओ
दर पे साइल करे जो आ के सदा
उस घड़ी बे-पनाह बन जाओ
कुछ न आये नज़र बजुज़ मह्बूब
एक आशिक़ की चाह बन जाओ
एक दुनिया तुम्हें सलाम करे
सच की आमाजगाह बन जाओ