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मर गई आस फिर भी ज़िन्दा हूँ / देवी नांगरानी

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मर गई आस फिर भी ज़िन्दा हूँ
देखो मुझको मैं इक करिश्मा हूँ

मैं तो ख़ुद से न मिल सका अब तक
मैं किनारा किसी नदी का हूँ

मुझसे क्यो बच के सब निकलते हैं
आदमी मैं भी इस सदी का हूँ

क्यों अंधेरों ने मुझको घेरा है
हिस्सा मैं भी तो चाँदनी का हूँ

हर तरफ से है घेरे हुस्न मुझे
मैं तो मुश्ताक भी उसी का हूँ

सुख का सागर छलक रहा घट में
मैं भी उसका ही एक कतरा हूँ

मेरा ईमान, सादगी मेरी
हर नुमाइश से दूर रहता हूँ

राख समझें न ये जहाँ वाले
‘देवी’ अंदर से मैं तो शोला हूँ