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मर गया रजऊ / प्रभात कुमार सिन्हा

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लम्बी उम्र तक जीने के बाद रजऊ मर गया
रजऊ अपने परकोटे में रहता था कबूतरों के
नर्म पंखों जैसे कोमलकांत शब्दों के साथ
कबूतरों के पतले कमजोर पंजों से
बाजों को हराने का सपना दिखाता था
रजऊ के सभी पखेरू उड़ गये उसके प्राण के साथ
जिस रामझरोखे बैठकर वह
कविता की दुनिया को परखने का नाटक करता था
वहाँ अब एक झीना पताका फहर रहा है
दिन को भी चांद दिखाता था रजऊ
प्रतीकों के झालर झरझराते थे परकोटे में
फन्नियों से बना सूरज रचकर
भरमाता रहा दिनान्त से निशान्त तक
अब उसके चटियों का क्षीण रुदन सुनाई पड़ता है
आखिर लम्बी उम्र तक जीने के बाद
रजऊ मर गया।