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मर रही है मेरी ज़बान / सुरजीत पातर
Kavita Kosh से
मर रही है मेरी ज़बान
क्योंकि ज़िन्दा रहना चाहते हैं
मेरी ज़बान के लोग
ज़ि्न्दा रहना चाहते हैं
मेरी ज़बान के लोग
इस शर्त पे भी
कि ज़बान मरती है तो मर जाए
क्या आदमी का ज़िन्दा रहना
ज़्यादा ज़रूरी है
या ज़बान का ?
हाँ, जानता हूँ,
आप कहेंगे
इस शर्त पे जो आदमी ज़िन्दा रहेगा
वो ज़िन्दा तो होगा
मगर क्या वो आदमी होगा ?
आप मुझे जज़्बाती करने की कोशिश ना कीजिए
आप ख़ुद बताइए
अब जब
दाने दाने के ऊपर
खाने वाले का नाम भी
आपका ख़ुदा अंग्रेज़ी में ही लिखता है
तो कौन से बेरहम वालदैन चाहेंगे
कि उनका बच्चा
एक डूब रही ज़बान के सफ़ीने पर बैठा रहे ?
जीता रहे मेरा बच्चा
मरती है तो मर जाए
आपकी बूढ़ी ज़बान ।