Last modified on 5 अक्टूबर 2022, at 22:57

मल्टीनेशनल कंपनियांँ और विज्ञापन / महेश कुमार केशरी

मल्टी नेशनल कंपनियांँ
दाई की तरह
देख लेतीं हैं पेट को

वो हमारी जरूरत और
गैर जरूरत की
चीजों पर बडी़ बारीकी से
नजर रखे हुए
होती हैं

वे मन-ही-मन कुटिलता से
मुस्कुराती हैं, महानगरों
में, खराब होती हवा की
गुणवत्ता को देखकर

वो मन-मन
मुस्कुराती हैं
शहरों में काले पड़ते कृत्रिम
फेफड़ों
को देखकर

वो चाहती हैं, दुनियाँ की
हवा इतनी
खराब हो जाये कि लोगों
का सांँस लेना
मुश्किल हो जाये

और, शहर पट जाये
कृत्रिम, हवा के एयर-
फील्टरों से

और, तेजी से वह उत्पादन
करने लगे
हवा को साफ करने वाली
मशीनों का ।

और, बढ़ने
लगे हवा को साफ करने वाली
मशीनों की मांँग

ऐसे समय में जब दुनियाँ के
तमाम जलस्त्रोतों पर बड़ी
मल्टीनेशनल कंपनियों
का कब्जा
हो गया है

और रोज-रोज, नई-नई
पानी बनाने वाली कंपनियांँ

पैदा होती जा रहीं हैं
जिनका अलग-अलग
तरह का पानी है
और उसकी
गुणवत्ता को बताने वाली
एक-से-बढकर एक दलीलें हैं

एक विज्ञापन में ये बताया
जा रहा है कि-ऊंँटों को भी ऐसा
वैसा पानी पसंद नहीं है
पीने के पानी की क्वालिटी ऐसी
होनी चाहिए
जैसा हमारे विज्ञापन में ऊंँट पीना
चाहते हैं

विज्ञापन की दुनिया में इससे बडा़
झूठ और क्या हो सकता?

एक ऐसे समय में जब दुनियाँ
के लगभग तमाम जलस्त्रोतों
के ऊपर
मल्टीनेशनल कंपनियों
ने अपने खूनी पंँजे गड़ा दिये हैं
तब ऊंँटों या जानवरों के लिए
बहुत अच्छा तो क्या खराब पानी
भी बचेगा?

विज्ञापन के जरिये
लोगों में हीन
भावना को भरा जा रहा है

वो शादी के विज्ञापन में
खूबसूरत लड़के-
लड़कियों के चेहरे दिखाकर
ये कहते हैं-कि शादी के लिए
अपने किसी चाचा या मामा
या दूर के किसी रिश्तेदार के
लड़के-लड़कियों की जरूरत
अब नहीं है
आप हमारे साइट
से अपना मनपसंद का जीवन-
साथी तलाशिये

आप सांँवले हैं या काले हैं
आपको बिना बताये ही
आपको गोरा होने की
क्रीमें, बेची जा रहीं

और तो और, एक विज्ञापन में
"नजर सुरक्षा" कवच को भी
बेचा जा रहा है
वही नजर-गुजर
से बचाने वाली ताबीज जो किसी
मेले में कोई पीर-फकीर, या साधु-
संयासी बेचा करते थें

इन पीर-फकीरों को
भी मल्टी-नेशनल कंपनियों ने
हाशिये पर धकेल दिया है

ऐसे ही धीरे-धीरे संसार की सारी
चीजें, ये मल्टीनेशनल कंपनियांँ
विज्ञापन के जरिये बेच देंगी

और, हाशिये पर पडा़ होगा
आज-का हमारा आम-आदमी