भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

महफिलों में जा के घबराया किये / 'बाकर' मेंहदी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

महफिलों में जा के घबराया किये
दिल को अपने लाख समझाया किये

यास की गहराइयों में डूब कर
ज़ख्म-ए-दिल से ख़ुद को बहलाया किये

तिश्‍नगी में यास ओ हसरत के चराग़
ग़म-कदे में अपने जल जाया किये

ख़ुद-फ़रेबी का ये आलम था के हम
आईना दुनिया को दिखलाया किये

ख़ून-ए-दिल उनवान-ए-हस्ती बन गया
हम तो अपने साज़ पर गाया किये