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महबूबा / अभिषेक कुमार अम्बर
Kavita Kosh से
सबकी मेहबूबा है वो सबके दिल की रानी है।
मेरी गली के लड़कों पे जबसे आई जवानी है।
कभी कभी लगती मुझको वो सब तालों की चाबी है।
और जिससे पूछों वो ही कहता भैया तेरी भाभी है।
जब अपनी सखियों के संग जाती वो बाजार है।
ऐसे खुश होते हैं सारे जैसे कोई त्यौहार है।
किसी के दिल को चैन नहीं है सबकी नींद चुरायी है।
किसी को लगती रसगुल्ला तो किसी को बालूशाही है।
गली के सारे लड़कों का ऐसा हाल कर डाला है।
सब जन्मों के प्यासे हैं वो अमृत का प्याला है।
कॉलेज का क्या हाल सुनाऊं सब जगह उसका चर्चा है।
और महंगाई की तरह बढ़ रहा लड़कों का अब खर्चा है।
अम्बर पूरे हो पाएंगे क्या उनके मनसूबे हैं।
कॉलेज के सारे लड़के ही अब कर्जे में डूबे हैं।