Last modified on 13 अगस्त 2018, at 20:50

महब्बत कर के पछताना पड़ा है / राजेंद्र नाथ 'रहबर'

मुहब्बत कर के पछताना पड़ा है
ग़मों में ग़र्क हो जाना पड़ा है

किसी ने मुस्कुरा कर जब भी देखा
मुझे कुछ देर रुक जाना पड़ा है

दिल आमादा न था तर्के-वफ़ा पर
इसे ता देर३ समझाना पड़ा है

उन्हें आवाज़ दी है जब भी दिल ने
वो आये हैं उन्हें आना पड़ा है

शबे-फ़ुर्कत बड़े हीलों से 'रहबर`
दिले-मुज़्तर को बहलाना पड़ा है