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महब्बत कर के पछताना पड़ा है / राजेंद्र नाथ 'रहबर'
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मुहब्बत कर के पछताना पड़ा है
ग़मों में ग़र्क हो जाना पड़ा है
किसी ने मुस्कुरा कर जब भी देखा
मुझे कुछ देर रुक जाना पड़ा है
दिल आमादा न था तर्के-वफ़ा पर
इसे ता देर३ समझाना पड़ा है
उन्हें आवाज़ दी है जब भी दिल ने
वो आये हैं उन्हें आना पड़ा है
शबे-फ़ुर्कत बड़े हीलों से 'रहबर`
दिले-मुज़्तर को बहलाना पड़ा है