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महरुमियों के साज़ पे गा कर चले गये / शोभा कुक्कल
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महरुमियों के साज़ पे गा कर चले गये
इक दर्दनाक गीत सुना कर चले गये
गंगा स्नान ही से रहे चंद लोग खुश
कुछ अपने आंसुओं में नहा कर चले गये
रुसवा हुए जहान में कुछ लोग बे-तरह
कुछ लोग ख़ूब नाम कमा कर चले गये
मीरा तो मैं नहीं थी मगर लोग क्यों मुझे
विष से भरा पयाला पिला कर चले गये
आते रहे हैं नेक फ़रिश्ते यहां सदा
जो पाठ नेकियों का पढ़ा कर चले गये।