महाकाली / आद्याशा दास / राजेंद्र प्रसाद मिश्र
शक्ति से ताकत लेकर जो बने हैं बलवान
उन्हीं लोगों ने शक्तिमयी का नाम दिया है अबला
हे महाकाली ! तेरी दर्पित मूर्ति देख
क्या कह सकते हैं वे लोग, तू अबला है, दुर्बला है !
नारी-रस चूसकर वे हैं रसिक
पर क्या वे नहीं जानते
जब तू नर-रस चूस लेती है
तब बचा रह जाता है
हाड़, कंकाल, नरमुंडमाल ।
महाकाली, क्या आज भी शक्तिशाली रसिक
तेरा नाम रखेंगे अबला, दुर्बला ?
नभ में, नक्षत्र में तू त्रिपुर सुंदरी है
अर्थी में, चिताग्नि में, लहलह विस्तार में
तू है श्मशान-काली ।
शिव की छाती पर तेरा पैर -
डमडम डमरू से तेरा जयनाद
तुझसे सारी शक्ति निकाल लेने पर भी
ना तो तू दुर्बला है
ना ही वे लोग तेरे बिना शक्तिमान ।
महाकाली ! कौन है ऐसा शक्तिशाली
जो करेगा तुझ पर शक्ति मंडन
अखंड शक्ति ही है तेरा सौंदर्य
कराल कालिमा तेरी शोभा
स्थिति और प्रलय में, सृष्टि और संहार में
प्रेम और प्रतिहिंसा में,
ध्वंस और रक्षा-कवच में
तू है कला-शक्ति, करुणामयी मातृमूर्ति-जगदंबा ।