महाघोर आया कली, पड़ी पाप की धूम ।
पंथ वेद के छिप गए, ना होते मालूम ।।
ना होते मालूम पाप ने दाबी परजा ।
फिर सुख कैसे होय धर्म का हो गया हरजा ।।
गंगादास जन कहें नाथ ! हे नन्द किशोर ।
कैसे होगी गुजर कली आया महा घोर ।।
महाघोर आया कली, पड़ी पाप की धूम ।
पंथ वेद के छिप गए, ना होते मालूम ।।
ना होते मालूम पाप ने दाबी परजा ।
फिर सुख कैसे होय धर्म का हो गया हरजा ।।
गंगादास जन कहें नाथ ! हे नन्द किशोर ।
कैसे होगी गुजर कली आया महा घोर ।।