महाजन / पतझड़ / श्रीउमेश
चन्नर महतो एक महाजन छेलोॅ यै गामों में सेठ।
दू आना फी रुपिया मासिक, छै ओकरोॅ सूदोॅ के ‘रेट’॥
बेटी के बीहा में नफरु बीस रुपैया लेलेॅ छै।
साल भरी में तीस रुपैया सूदोॅ के वें देलेॅ छै॥
लेकिन बीस 3पैया मूरोॅ के धरला के धरले छै।
जान उपेखी खटै-मरै छै तैयो नफरु डरले छै॥
पफरु छै बड्डी गरीब परिबारो नै छै ओकरा कम।
ई करजा केना केॅ सधतै, सोचै छै नफरू हरदम॥
काटी-घीची दोॅस रुपैया सुदोॅ के देलेॅ गेलै।
एकरै लेॅ चनरॉे सें ओकरा बड़ा बिकट झगड़ा भेलै॥
नफरू बोललै, देखोॅ चन्नर, हमरोॅ तटा लाचारी।
मजदुरियै के ऊपर हमरोॅ ई छेकै दुनियाँदारी॥
कलेॅ-कलेॅ तोहरोॅ सब टकबा हम्में तेॅ दैये देभौं।
रीन रखी क मरबोॅ कैन्हें, तोरा सें फारक लेभौ॥“
चन्दर बोललै ”तों की देबे? दे हमरा लीखी बारी।
होले तों बेबाक आज स दै छीयौ रुक्का जारी॥“
नफरु बोललै ”बीसोॅ के चालीस रुपैया देलेॅ छी।
आजह तलक के सूदी देखोॅ तोरा सभे सधैलेॅ छी॥
आबेॅ जे बारी-झारी पर तोहें नजर गड़ावै छोॅ
कहनें आज गरीबोॅ केॅ यै ना तोंहें कलपाबै छोॅ?
चन्दर बोललै, ”बारी तेॅ आजे तोहरा बापें देतौ।
जेकरोॅ धारैछै वें तेॅ ठोकी-ठाकी लैये लेतौ॥
सीधा-सीधा बारी दे, नै तेॅ हेभेॅ नालिस करबौ।
आरो यै बीसोॅ के बदला दू सौ के दाबी घरबौ॥“
एतना सुनथै नफरू गोस्सा सें थर-थर कांप लागलोॅ।
तब तक नफरू के दामादो आबी केॅ झाँपेॅ लागलोॅ॥
बोललोॅ, ”तों की टेङटा-पोठिया हिनका समझी लेलेॅ छौ?
औंगठा के टीपोॅ पर दू सौ रुपिया कहिया देलेॅ छौ?
ईमानी-सैतानी के जों यहाँ उठैभे झुट्ठा बात।
तोहें समझी लेॅ एकरा सें तोहें खैब करभेॅ लात॥
महाजनी घुसियैये जैथौं, देभौं माथोॅ फोड़ी केॅ।
चेहरा देभौं लाल करीकेॅ, देभौं हड्डी तोड़ी केॅ॥“
चन्दर तखनी चिकरी उठलै, ”तों के छेकें रे सारोॅ?
बीचोॅ में टपकी केॅ तोहें, यहाँ करै छै घीकारोॅ॥
मारिहौं सारे जे जुता की, फाटी जैथौं यहीं बनास।
देभौं सारे जे पटकन की यै ठाँ सूंघ लागभेॅ घास॥
दोगलो, सारोॅ चोर, हरामी! रुपिया के बूडेॅ देतौ?
देतै नफरां गिनी-गिनी केॅ महाजनें लैये लेतौ॥
कहाँ अरे, जिंतुआ! लानें तेॅ जल्दी सें लाठी-भाला।
मार हरामी क पिल्ला केॅ के छौ रे देखै वाला?“
तब तक दून्हू ससुर-दमादें सड़ियैलक सोंटा-लाठी।
बजड़ी गेलै यही गाछ तर लाठी पर लाठी-काठी॥
माथोॅ फुटलै दून्हूं पच्छोॅ के, दोनों गेलोॅ थाना।
समझै छेलोॅ दून्हूँ आपना केॅ गामों के मरदाना॥