महात्मा / राजकमल चौधरी
देशक माटि जकर परिधान बनल सदिखन
देशक पानि जकर मधुपान बनल सदिखन
थिक वैह महात्मा
जे सभ पीड़ा आत्मवेदना चुप्पे रहि वरण करय
जे हँसि कय, मुस्का कय दुख-झंझा हरण करय
आक्रोशेँ हाहाकारेँ नइँ प्रलय मचाबय कहिओ
नियतिक पाथर-पथ पर आन्हर बनि चरण धरब
आस्था - शान्तिक सम्मान बनल सदिखन
थिक वैह महात्मा
जे चलय त नइँ पाछू-पाछू भागय जन-समाज
जे नइँ चिकरय-‘‘बदलब हम अन्यायक कुराज’’
पत्नीक नेह, परिवारक शरीरसँ बान्हल-छेकल
चलय ने कखनउँ क्रान्तिमार्ग लय देशोद्धार काज
जीबय गृह-आँगनके प्रान बनल सदिखन
थिक वैह महात्मा
जे ने जाए मन्दिर धरि पूजासँ निर्माण करय परलोक
जे बनि जाय खेतके आरि-घूरसँ सअल, मृत जोंक
नइँ ताकय आकाशक दिस, धरतीपर ओंघरायल रहय
समयक बरखा जकर हर्ष, दाही रौदी जकर शोक
बिहुँसय खेतक खरिहानक अभिमान बनल सदिखन
थिक वैह महात्मा