महापाप / दीपा मिश्रा
"माँ पता नै कोना
अहाँ के कोना ई गप्प कहू!
बाप रे बाप!
हमर सासु त'
महापाप पर महापाप
केने जा रहलीह?"
फोन पर भोरे- भोर
बेटीसँ ई बात सुनि
बुझा गेलैन जे समधिन
फेरो किछु केने हेतीह
हुनक समधि केँ जायब
मात्र दू माह भेलैन
सबसँ पहिने त' ओ
पुत्र द्वारा आनल
उज्जर साड़ी नै पहिरलैन
ई कहि जे "तोहर पिताकेँ
हम हरदम सजल
नीक लगैत छलियैन
हम पहिने जहिना रहैत छलहुंँ
तेहिना रहब
किछु नै छोड़ब"
बेटा, बेटी, पुतोहु बुझाकेँ
थाकि गेल आ छोड़ि देलक
'आब काल्हि घरक
अन्य सदस्य लेल माँछ बनल
हुनक निरामिष आ सात्विक भोजन
पुतोहु बना देलखिन
राति सबहक सुतलाक बाद
पुतोहुकेँ भनसाघरमे
खटपट सुनेलैन
बिलाईक भ्रममे गेलीह
अवाक रहि गेलीह
सासु माँछ खाइत छलीह
तुरंत पतिके उठौलैन
पुत्र मायक हाथसँ
थारी छीन लेलैन
"अहाँ होशमे छी??
बतैह भऽ गेलौं की?
बाबू नै छथि आ अहाँ माँछ खाइत छी?"
पुतोहु अलग फजैत करय लगली
माय सबटा सुनि
बस एतबे बजलीह
"यदि तोहर पिताक स्थान पर
हम गेल रहितियौ
त' की एहिना तों
पिता हाथसँ सेहो थारी छीन लैतें? "
आब एकर जबाब त'
समाजो लग नै अछि
पुत्र चुप रहि गेलाह।'
पुतोहुक माय बेटीकेँ
सबटा गप्प
चुपचाप सुनैत रहलीह
मात्र एतेक बजलीह जे
स्त्रीक व्यथा पुरुष की
स्त्रियो नै बुझैत छैक
जाबत ओ परिस्थिति
स्वयं नै अबैत छैक
तोरा कनेको बोध छौ?
बेटीक उत्तरक प्रतीक्षा केने बिना
ओ फोन राखि देलैन।