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महामना मदन मोहन मालवीय / अमरेन्द्र

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नाम मदन मोहन था लेकिन काम सरह-शंकर के
जब जन्मे था, गूंजा था संगीत सुरों में सप्तम
काशी बोल उठी थी हर हर महादेव और बमबम
पुलकित प्राण हुये थे, धूमिल और मलिन चीवर के ।

जागा था आलोक ज्ञान का तम को दूर हटाए
पराधीन भारत की जड़ता टूटी, चूर हुई थी
बरगद बन कर तनी लता, जो कल तक छुई-मुई थी
था प्रयाग की गंगा में भारत ही खड़ा नहाए ।

मंत्रा किसी ऋषिवर का, जिसको जन-जन जाप रहा था
लोकहितैषी, धर्महितैषी, पूर्ण पुरुष के कामी
देवदूत, ईश्वर के भू पर, निर्मल गुण के स्वामी
समय-शिशिर को घूर बनाकर योगी ताप रहा था ।

हिन्दू था, लेकिन हिन्दू से बहुत-बहुत ऊँचा था
घोर मिलावट के कलियुग में वह खाँटी-सूचा था ।