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महावरिष्ठ कवि / विचिस्लाव कुप्रियानफ़

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बड़ी उम्र के हमारे एक महावरिष्ठ कवि
अभी भी घसीट रहे हैं कविताएँ
मानो किसी को याद हो अब भी
प्रलयपूर्व काल की उनकी वह पुरानी भाषा

लेकिन हमारा समाज कल्याण विभाग
पूरी नज़र रखता है
कवि के घर पर
क्या कवि अब भी भेजेगा कविताएँ छपने के लिए
अपनी उम्र के हिसाब से वे क्षयशील कविताएँ
जिन्हें अब कहीं भी कोई नहीं पढ़ता
समाज कल्याण विभाग के अलावा

अगर सच-सच कहा जाए
तो पढ़ती है उन्हें, बस, कृत्रिम बुद्धि
जो खाद्य कार्यक्रम के अनुसार
कवि की रचनाओं को पारित नहीं होने देगी
कहीं छपने के लिए
और पाठकों को बचाएगी समाज के कल्याण से
यानी उन्हें भी पढ़ने की कोई ज़रूरत है
इस अनिवार्य कर्त्तव्य से

और ठीक समय पर बचा लेगी
हमारे इस महावरिष्ठ कवि को
ज़रूरत से ज़्यादा खाने-पीने से
और बेकार ही नाराज़ होने से

जब अदृश्य कृत्रिम बुद्धि
अपने प्रोग्राम के अनुसार थरथराती है
अपने सभी अरबी अंकों के साथ
अपनी हमेशा खुली आँखों से यह देखकर
हंस के पंख से बनी क़लम से एक मुड़े-तुड़े काग़ज़ पर लिखे
वे शब्द भी थरथराते हैं
महावरिष्ठ कवि ने अपने काँपते हाथों से लिखा था जिन्हें

मूल रूसी भाषा से अनुवाद : अनिल जनविजय
लीजिए, अब यही कविता मूल रूसी भाषा में पढ़िए
              Вячеслав Куприянов
    ПОЭТ ПОЧТЕННОГО ВОЗРАСТА

Поэт почтенного возраста
Все еще кропает стишки
Как будто кто-то еще помнит
Его допотопный язык
Но отдел социальной защиты
Внимательно следит
За своим подопечным поэтом
Не выпустит ли в свет подопечный
Свои согласно своему возрасту
Безусловно упадочные стишки
Которые все равно никто не читает
Кроме отдела социальной защиты

А говоря точнее никто кроме
Искусственного интеллекта который
Согласно продовольственной программе
Не пропустит выпущенного в свет поэтом
И защитит читателей из отдела защиты
От необходимости читать вообще

И вовремя защитит почтенного поэта
От избытка съеденного и выпитого
И поэту не на кого обижаться

Когда невидимый искусственный интеллект
Запрограммировано вздрагивает
Всеми своими арабскими цифрами
Заметив своим недреманным оком
Гусиное перо и свиток папируса
В дрожащих руках почтенного поэта