भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

महाशक्तिशाली / पृथ्वी: एक प्रेम-कविता / वीरेंद्र गोयल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

एक व्यक्ति
चौराहे पर चिल्ला रहा
मदद करो
पूर्वजों को ढूँढने में
मदद करो
अंडज, जेरज, स्थावर, जंगम
रहम करो
इस रेगिस्तान में अकेला
इस बियाबान में अकेला
कुछ तो बताओ
कुछ तो दिखलाओ
दिलासा दो
कि कदम उठाऊँ
पूर्वजों को ढूँढ़ लाऊँ
कि अपनों को पाऊँ!
एक व्यक्ति
भरी दोपहर में चिल्ला रहा
दोनों हाथ उठाये
आकाश को टेक दे
धरा पर पाँव जमाये
हे ईश्वर
कुछ तो सुनो
कोई प्रार्थना
कोई बुदबुदाहट
कोई फुसफुसाहट
शब्द इकट्ठे करो
बहने दो आँसुओं को
बनने दो मोती,
चाँद-सितारे
फैली है ये जो चादर
चमक रही यहाँ-वहाँ
शिव के भाल पर
बहो मेरी गंगा
बहो
शीतल करो
प्रज्वल्लित हड्डियों को
धो डालो ये राख!
एक व्यक्ति चिल्ला रहा
कमंडल उठाके
आगे-आगे
भागा जा रहा
हरहराती आओ
सब्ज कर जाओ
मदद करो
पूर्वजों को ढूँढ़ने में
मदद करो
अंडज, जेरज, स्थावर, जंगम
कुछ तो उच्चारांे
कोई संकेत
कोई संकेत
कोई भंगिमा
कोई सन्नाटा
कोई सरसराहट!
एक व्यक्ति
एक टाँग पर खड़ा
चिल्ला रहा
मदद करो
खुद को ढूँढ़ने में
मदद करो
कब तक
सुख-दुख के पलड़ों में
खुद को झुलाता रहेगा
क्या कोई छुटकारा नहीं
मदद करो
आजाद होने में
खुद को खोने में
एक व्यक्ति
ब्रह्मांड मंे खड़ा
चिल्ला रहा
मदद करो!
सब-कुछ तो लील लिया
कोई कंधा चाहिए
रोने के लिए
कोई साथ
सुख-दुख बाँटने के लिए
एक व्यक्ति
ग्रहों-तारों को धकेलता
रास्ता बना रहा
पूर्वजों के पास
पहुँचने के लिए
अपनी ताकत आजमा रहा
मदद करो
मदद करो
सब ओर चिल्ला रहा
अपने मोतियों-से-आँसू
आकाशगंगा में सजा रहा।
एक व्यक्ति
खड़ा दिशायें गुँजा रहा
ब्रहमांड को हिला रहा
ओम शांति
ओम क्रांति
शिव का डमरू बजा रहा।