भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
महिला सुरक्षाकर्मी / संजय कुंदन
Kavita Kosh से
जब वह सड़क पर दिखती है मुस्तैद खड़ी
तो कोई उसकी नथ देखता है
और चौंक उठता है - अरे, यह नथ भी पहनती है
कोई उसके हाथों की ओर देखता है और आश्चर्य करता है
अरे यह मेहँदी भी लगाती है
कोई करता है प्रश्न
क्या यह खड़ी रह पाती होगी धूप में घंटों इसी तरह
उस महिला सुरक्षाकर्मी को घूर रहे मर्दों को क्या मालूम
कि यह उस औरत की बेटी है
जो रोज दस मील चल कर
किसी बीहड़ से निकाल कर लाती रही है पानी
उसी माँ ने दिया है इसे अपना कलेजा!