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माँझी / महेन्द्र भटनागर
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साँझ की बेला घिरी, माँझी !
अब जलाया दीप होगा रे किसी ने
- भर नयन में नीर,
- भर नयन में नीर,
और गाया गीत होगा रे किसी ने
- साध कर मंजीर,
- साध कर मंजीर,
मर्म जीवन का भरे अविरल बुलाता
- सिन्धु सिकता तीर,
- सिन्धु सिकता तीर,
स्वप्न की छाया गिरी, माँझी !
दिग्वधू-सा ही किया होगा
- किसी ने कुंकुमी शृंगार,
झिलमिलाया सोम-सा होगा
- किसी का रे रुपहला प्यार,
लौटते रंगीन विहगों की दिशा में
- मोड़ दो पतवार,
- मोड़ दो पतवार,
सृष्टि तो माया निरी, माँझी !