भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
माँसपिंड मैं हूँ नहीं केवल / उर्मिल सत्यभूषण
Kavita Kosh से
कर नहीं सकते अगर
नारीत्व का सम्मान
अस्मिता मेरी अगर
पाये नहीं पहचान
तो त्याज्य हो मेरे लिये तुम पुरुष।
एक व्यक्तित्व हूँ
नहीं हूँ माँसपिंड केवल
भोग्या केवल नहीं
तुम भोग को आतुर
तो त्याज्य हो मेरे लिये तुम पुरुष।
नारी हूँ गरिमामयी
मैं हूँ न पाषाणी
स्नेहधारा पर करोगे
अगर मनमानी
तो त्याज्य हो मेरे लिये तुम पुरुष।
कल्याणकारी इस मनीषा को
अगर दो मान
निष्कलुष आलोकमय
निज स्नेह का दो दान
तभी होगे ग्राह्य तुम हे पुरुष।