भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
माँ-माँ / पृथ्वी: एक प्रेम-कविता / वीरेंद्र गोयल
Kavita Kosh से
आधी रात में
आधा चाँद
अकेला
अनंत आकाश में
मुख प्रकाशमान
पर पिछवाड़े
है दर्द भरा अँधेरा
आधी दुनिया की तरह
मोहित करता है रूप
थामे है धरा को
अपनी शक्ति से बड़ा काम
माँ तो एक होती है
मामा में दो माएँ होती हैं
क्या करे इस अकेले पन का
दूर-दूर तक
कोई पास नही
फिर भी रहता कभी उदास नहीं।