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माँ-2 / राजूरंजन प्रसाद

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मैंने कहा--दुख
और माँ का चेहरा म्लान हो गया
शिथिल पड़ने लगीं देह की नसें
कहां रही ताक़त
जवान गर्म खून की
दौड़ता फिरे जो
अश्वमेध के घोड़े-सा
मैंने कहा--मां
और उसकी आंखों में आंसू आ गए।
(9.7.01)