माँ अकेली रह गयी / अनामिका अनु
माँ अकेली रह गयी
ख़ाली समय में बटन से खेलती है
वे बटन जो वह पुराने कपड़ों से
निकाल लेती थी
कि शायद काम आ जाए बाद में
हर बटन को छूती
उसकी बनावट को महसूस करती
उससे जुड़े कपड़े और कपड़े से जुड़े लोग
उनसे लगाव और बिछड़ने को याद करती
हर रंग, हर आकार और बनावट के वे बटन
ये पुतली के छठे जन्मदिन के गाउन वाला
लाल फ्राक के ऊपर कितना फबता था न
मोतियों वाला ये सजावटी बटन
ये उनके रेशमी कुर्ते का बटन
ये बिट्टू के फ़ुल पैंट का बटन
कभी अख़बार पर सजाती
कभी हथेली पर रख खेलती
कौड़ी, झुटका खेलना याद आ जाता
नीम पेड़ के नीचे काली माँ के मंदिर के पास
फिर याद आ गया उसे अपनी माँ के ब्लाउज़ का बटन
वो हुक नहीं लगाती थी
कहती थी बूढ़ी आँखें बटन को टोह के लगा भी ले
पर हुक को फँदे में टोह कर फँसाना नहीं होता
बाबूजी के खादी के कुर्ते का बटन
होगी यहीं कहीं
ढूँढ़ती रही दिन भर
अपनों को याद करना भूल कर
दिन कटवा रहा है बटन
अकेलापन बाँट रहा है बटन