भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

माँ के शव के पास रात भर जागने की स्मृति / विष्णु नागर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सबेर हुई जा रही है
माँ को उठाना है

प्राण होते तो माँ ख़ुद उठती

माँ को उठाना है
नहलाना है
नए कपड़े पहनाने हैं
अंत तक ले जाना है
स्मृति को मिटाना है।