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माँ तुझे में गुनगुनाना चाहता हूँ / सुरजीत मान जलईया सिंह

फिर वही किस्सा सुनाना चाहता हूँ
माँ तुझे मैं गुन-गुनाना चाहता हूँ

कल सिरहाने जो तुम्हारा हाथ था
उसको फिर तकिया बनाना चाहता हूँ

फिर उठा ले गोद में अपनी मुझे
दुनियां - दारी भूल जाना चाहता हूँ

इस शहर ने छीन ली बरकत मेरी
मैं सभी को ये बताना चाहता हूँ

सर छुपाने को जगह तक ना मिली
आँख के आँसू दिखाना चाहता हूँ

छोड कर जन्नत जहाँ हम आ गये
फिर उसी मन्दिर में सजदा चाहता हूँ

जिन्दगी थकने लगी है अब मेरी
फिर तुम्हारे पास आना चाहता हूँ

पाँव में छाले किये इस उम्र ने
फिर वही बचपन सुहाना चाहता हूँ…