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माँ तुझे मेरी कसम है! / शम्भुनाथ तिवारी

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माँ तुझे मेरी कसम है,
वतन पर मरना सिखा दो!

हो गए कुर्बान पल में,
जो वतन की शान पर।
आँच आने दी न हर्गिज,
देश के सम्मान पर ।
आज उन सारे शहीदों,
की अमर गाथा सुना दो।
माँ तुझे मेरी कसम है,
वतन पर मरना सिखा दो!

ताज काँटों का पहनकर,
चल पड़े किस राह में।
होड़ थी गरदन कटाएँ,
हम वतन की राह में।
वे चले जिस राह पर,
उस पर मुझे चलना सिखा दो।
माँ तुझे मेरी कसम है,
वतन पर मरना सिखा दो!

वतन की मिट्टी में मिलने,
का जिन्हें कुछ गम नहीं है।
उन शहीदों की चिताएँ,
तीर्थों से कम नहीं हैं।
माँ, उसी तीरथ की मिट्टी,
भाल पर मेरे लगा दो।
माँ तुझे मेरी कसम है,
वतन पर मरना सिखा दो!

है सफल जीवन वही जो,
देश हित में काम आए।
प्राण जब निकले जुबाँ पर,
वतन का ही नाम आए।
मरण भी त्योहार बन जाए,
सबक ऐसा सिखा दो।
माँ तुझे मेरी कसम है,
वतन पर मरना सिखा दो!