भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

माँ मैं तेरे मंदिर का दिया / इंदिरा शर्मा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

माँ मैं तेरे मंदिर का दिया
तेरे ही चरणों में जिया |
जलता रहता झिलमिल – झिलमिल
मन मंदिर में अर्जित – पूजित
नित सांध्य तुझे अर्पित किया
तेरे ही चरणों में जिया |
नव दिन तेरे हैं रूप नवल
तू दिव्य रूप शिव , कल्याणी
अमृत घट भरे वरदान सदा
माँ मैं तेरे मंदिर का दिया
तेरे ही चरणों में जिया |
जग में तेरी महिमा अनंत
सबका जीवन जग में सुखमय
दुष्टों का तूने उद्धार किया
माँ मैं तेरे मंदिर का दिया
तेरे ही चरणों में जिया |
तेरे चरणों में शीश रहे
मन भक्ति में तल्लीन रहे
मन में सेवा का भाव सदा
माँ मैं तेरे चरणों का दिया
तेरे ही चरणों में जिया |