माँ उन सलाई ले
गिरे हुए फंदे उठाती है ।
मोटी लाल बिंदी में 
कुछ अधिक ही
माँ नज़र आती है ।
वो बात बेबात 
हंसती है, मुस्कुराती है ।
कड़कती धूप में 
शीतल हवा सी 
मन को सहलाती है  ।
तनहा सफ़र में 
साथ मेरे चलती है
मुझको समझाती है ।
कंगारूओं के देश में 
अपनी उस माँ की 
मुझे याद आती है ।