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माँ / सुरेश कुमार मिश्रा 'उरतृप्त'
Kavita Kosh से
नौ महीने का दर्द लेकर
जन्म तुमने हमको दिया
कर सके कुछ अच्छा
इसका तू ने एक मौका दिया।
प्रकृति को कोख में समेट कर
जीवन का सारा आनंद हमको दिया
वायु अग्नि जल आदि मिलाकर
कोमल-सा एक तन दिया।
श्रवण को ना हम बन सके
लेकर श्रवण जैसा कुछ कर जाएंगे
जीवन के कर्म पथ पर
तेरा नाम अमर लिख जाएंगे।
दुनिया के सात अजूबे व्यस्त हैं
तेरे धन्य कोख के सामने
गांधी, भगत को तूने जन्म दिया
जो चल पड़े तेरी उंगली थाम के।
जीवन का आरंभ कर तू
समापन भी तू ही करती है
जीवितांत तक साथ रहकर
धन्य तू हमें करती है।
कोख तेरी हम सफल करेंगे
गोद में तेरे फूल भरकर।
चाहेंगे तेरी प्रतिमा को
चरण में तेरे शीश झुका कर।