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मां-२ / ओम पुरोहित ‘कागद’

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साठ साल पहले
अपने दहेज में आई
संदूक को
अपनी खाट के नीचे
रख कर सोती है मां !

रेज़गारी रखती है
तार-तार हुई सी
पुरानी गुथली में
फ़िर उसे
सलीके से समेट कर
रख देती है
पुरानी संदूक में !

पौती-पौते संग
खेलते-खेलते
फ़ुरसत में कभी
निकाल कर देती है
अठन्नी
चवन्नी
मीठी गोली
चूसने के लिए !

अनुवाद-अंकिता पुरोहित "कागदांश"