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मां की याद / कर्णसिंह चौहान
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सब कुछ है यहां
स्वजन, परिजन
यार-दोस्त
अच्छे-बुरे
तमाम रिश्ते-नाते
बस तुम नहीं हो ।
चलती बेला जो बताया
नियमित खान-पान
सेहत का ख्याल
सबसे हेल-मेल
मीठी बोली-बानी
बस इन्हीं में
तुम कहीं हो ।
हर पकी उम्र
झुर्रीदार चेहरे
शिथिल चाल में
तलाशता हूं तुम्हें
कि
सुनूं आशीष
मंगल का घेरा
माथे को सहलाता हाथ ।
कुहासे में छिप जाने तक
पीछा करती है नजर
कहीं नहीं यहां
रोटी में मिठास भरते
खुरदरे हाथ
दूर तक सुरक्षा में फैली
लड़खड़ाती रोशनी
ठंडे पकवान पर प्रतीक्षा करता
कातर मन
सिरिस की सुखदायी छांव
कहां यहां ?