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मां (2) / कैलाश पण्डा
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ओ माँ,
जगत्तारिणी माँ
तू तरूवर सी छाया
तेरे आंचल में
विश्व समाया
ओ माँ
तू प्रकृति की आद्या शक्ति
तेरे ही कारण
सम्पूर्ण प्राणी
जीवन पाकर
पृथ्वी के कण-कण में आश्रित
ओ ममतामयी, निजस्वार्थ को भूल
परताप से पीड़ित
परसुख से हर्षित
तुम जीती हो
ओ माँ
मैंने देखे तेरी आंखों मेें
स्नेहिल कण।