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माई / अनूप सेठी
Kavita Kosh से
क्या होता है जहां
बाहुबल सिरा जाता है
बुद्धिबल छीज जाता है
कोई ताकत अनबूझी घर को भर देती है
बेटी सिर पर धारे घर की लाज चलती है
निर्भय
बाबा न बोलेंगे
गहन ध्यान में मुनिवर ज्ञानी
निर्गुण
आसीस ले आगे बढ़ेंगे राजकुंवर
माई की मुस्कान कमजोर की ताकत
निर्लिप्त
ऐसी सूरज किरण खिलेगी सलोनी
दुख ताप बिंध के चरणों में लोटेगा
निर्मल
कब आंसू का अंजन आंज के
माई की आंख में हंसी तिर जाएगी
कौन जाने
घर भर के राग द्वेष को मांज के सजा देती है माई
दिवाले में जैसे तांबे की अरघी चमकीली.