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माटि आ मोज़ाइक / कीर्तिनारायण मिश्र
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जखन तखन अहाँ हमरा लग अबि कए
आँखि नींचा कए
भ’ जाइत छी ठाढ़ि आ’ पैरक आंगुरसँ
नोच’ लगैत छी फर्श
कतेक लाल भ’ जाइत अछि
अहाँ केर न’ह
किछु तँ बुझियौ
ई गामक नरम-कोमल माटि नहि
मोज़ाइक अछि
तरबा केर नीचा मे।