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माता-पिता के साथ / श्रीजात वन्द्योपाध्याय / अनिल जनविजय

मैं कभी समुद्र के पास नहीं गया
न ही मैंने
अपने माता-पिता के साथ कभी देखे पहाड़
न ही गया मैं कभी चिड़ियाघर
बाग़-बग़ीचों में या कभी पुस्तक मेले में ।

घर लौटकर मैं
अपने कमरे में जाकर कपड़े बदलता था
और यह महसूस करता था प्रतिदिन
कि दूर होते जा रहे हैं
मेरे माता-पिता एक-दूसरे से ।

हाँ, यह ज़रूर है कि कभी उन्होंने
मुझे आगे बढ़ने से नहीं रोका ।

मूल बांगला से अनुवाद : अनिल जनविजय