माता भक्ति / 9 / भिखारी ठाकुर
प्रसंग:
स्वतंत्रता-प्राप्ति के बाद सामाजिक जीवन में बेहद उत्साह आ गया था; किन्तु उस उत्साह ने पारिवारिक जीवन में विपरीत असर डाला। पुत्र एवं पुत्र-बधुएँ तथा बूढ़े माँ-बाप की मानसिकता बदलने लगी। इसी मानसिकता का चित्र यहाँ उरेहा गया है।
चौपाई
लौटल बा अनपुछ के पारी, दादा पर नाती देखवलन जारी।
खायवाला घर बा खाला, टटी फिरे के बनल दुताल्ला;
कतिना निपढ़ चढ़वलन चमन, पढेवाला देखवलन बन॥
कतिना आन्हर कइलन भजन; आँख अछइते सहलन गजन;
बेटा-बाप से कइलन बैर, देवी रोज मनवलन खैर॥
कइसे सहल जाई अपत। सास के मरली पतोहिया मत;
भइल सुराज किला अबर। माई-बाप पर भइली जबर॥
माई-बाप के देखलीं लीला। बनी सुराज के असली किला;
मन मौला छोड़ब भीर। पार लगइहन मुरगिया पीर।
बहराइच के पीर। नियते बुढ़ के कटल सिर;
कलिकाल के सुनी नतीजा। चाचा पर चकू चलवलन भतीजा॥