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मातृभूमि / येव्गेनी येव्तुशेंको
Kavita Kosh से
मैं अक्सर ही उलझ जाता हूँ झूठ से ।
पर, बचा सका हूँ यदि कुछ निष्कलुष
बचा सका हूँ अपनी हथेली पर जिस चिंगारी को
वह है मेरी मातृभूमि ।
निराशाजनक नहीं है बिना ख्याति के जीना
पर, यदि फिर भी, ओ मित्रो !
सम्भव नहीं जीना बिना किसी चीज़ के
वह है मेरी मातृभूमि ।
संसार में सब कुछ अन्तहीन नहीं है
महासागर से ले कर झरने तक,
पर, यदि कुछ चिरन्तन है इस संसार में
वह है मेरी मातृभूमि
मैं जिया हूँ बिना सोचे-समझे
कभी-कभी अपने आपको ही फुसलाते हुए
पर, यदि मैं जान दूँ किसी के लिए
वह है मेरी मातृभूमि ।
मैं जब न रहूँगा -- सूर्य रहेगा,
रहेंगे लोग, रहेगा देश
और यदि कोई मुझे याद करेगा
वह है मेरी मातृभूमि ।