मातृ-मूर्ति / मैथिलीशरण गुप्त
जय भारत-भूमि-भवानी!
अमरों ने भी तेरी महिमा बारंबार बखानी।
तेरा चन्द्र-वदन वर विकसित शान्ति-सुधा बरसाता है;
मलयानिल-निश्वास निराला नवजीवन सरसाता है।
हदय हरा कर देता है यह अंचल तेरा धानी;
जय जय भारत-भूमि-भवानी!
उच्च हदय-हिमगिरि से तेरी गौरव-गंगा बहती है;
और करुण-कालिन्दी हमको प्लावित करती रहती है।
मौन मग्न हो रही देखकर सरस्वती-विधि वाणी;
जय जय भारत-भूमि-भवानी!
तेरे चित्र विचित्र विभूषण हैं शूलों के हारों के;
उन्नत-अम्बर-आतपत्र में रत्न जड़े हैं तारों के।
केशों से मोती झरते है या मेघों से पानी ?
जय जय भारत-भूमि-भवानी!
वरद-हस्त हरता है तेरे शक्ति-शूल की सब शंका;
रत्नाकर-रसने, चरणों में अब भी पड़ी कनक लंका।
सत्य-सिंह-वाहिनी बनी तू विश्व-पालिनी रानी;
जय जय भारत-भूमि-भवानी!
करके माँ, दिग्विजय जिन्होंने विदित विश्वजित याग किया,
फिर तेरा मृत्पात्र मात्र रख सारे धन का त्याग किया।
तेरे तनय हुए हैं ऐसे मानी, दानी, ज्ञानी--
जय जय भारत-भूमि-भवानी!
तेरा अतुल अतीत काल है आराधन के योग्य समर्थ;
वर्तमान साधन के हित है और भविष्य सिद्धि के अर्थ।
भुक्ति मुक्ति की युक्ति, हमें तू रख अपना अभिमानी;
जय जय भारत-भूमि-भवानी!