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मातृ गीत / कालीकान्त झा ‘बूच’

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तोरे मुस्की मे अभिनव आनंदक अनुपम देश गय
तोरे दयादृष्टि मे नव नव सौन्दर्यक परिवेश गय

चिता भस्म तन, कर कपाल छल
रूप अशुभ गर मुंडमाल छल
सर्पकंठ, विष असन दिगम्बर,
मरूघट वास कतऽ आंग़न घर
तोरे हाथ पकड़ि भिखमँगबा भोला भेला महेश गय
माइक हाथ पकड़लनि बाबू,
ओहि हाथ पर हुनके काबू,
बेटो तऽ चरणक अधिकारी
उठलै तखन प्रश्न ई भारी,
तोहर हाथ पैर दु दुहू मे महिमा ककर विशेष गय
शिशुक लेल आरामदेह
माइक शरीर मोमक चाही,
मक्खन सन कोमल करेज आ,
हास शरद सोमक चाही,
तखन किए पथरयलहुँ धयलहुँ अपन पाथरक भेष अय।