माधव! नित मोहि दीजियै निज चरननि कौ ध्यान।
सकल ताप हर मधुर सुचि, आत्यंतिक सुख-खान॥
सब तजि सुचि रुचि सौं सदा भजन करौं बसु जाम।
रहौं निरंतर मौन गहि, जपौं मधुरतम नाम॥
मन-इंद्रिय अनुभव करैं नित्य तुहारौ स्पर्श।
मिटैं जगत के मान-मद-ममता-हर्ष-अमर्ष॥
रति-मति-गति सब एक तुम, बनैं अनंत-अनन्य।
तुम में भाव भरे हृदय जुरि हो जीवन धन्य॥