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माधवी की अविश्वसनीय स्मृति / रुद्र मुहम्मद शहीदुल्लाह / शिव किशोर तिवारी

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माधवी कल चली जाएगी।
उसके हाथ में फूलों को थमाकर बोला,
‘तुम भी फूल की तरह झड़ जाओगी?’
वह चुप, उदासीन।
कौए के पँख की तरह काले उसके नयन
क्षण भर में भर आए
पलकें काँपीं हौले से।

नए ख़रीदे ज्योमेट्री बाक्स के
चकमक कवर की तरह
उसकी आँखें आँसुओं से झिलमिलाने लगीं,
लाल किनारी वाली साड़ी जैसे उसके होंठ,
बात करती तो लगता कोई गा रहा है
चिरपरिचित कण्ठ-स्वर में
सभा के अनुरोध पर।

उसके होंठ काँपे
हलके-हलके
ज़रा-ज़रा
सिनेमा के मख़मली परदे की तरह।
मुझे जकड़ लिया उसने,
बच्चों की तरह रोई वो।
उसके लाल होठ बार-बार काँपे
वो बोली ‘तुझे कभी नहीं भूलूँगी’

लेकिन यही माधवी कहती थी
अकसर कहती,
स्मृति नाम की किसी चीज़ में
मुझे यक़ीन नहीं है।

मूल बांग्ला से शिव किशोर तिवारी द्वारा अनूदित