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मानव परिवार / बालकृष्ण काबरा ’एतेश’ / माया एंजलो

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मुझे स्पष्ट दिखती हैं विषमताएँ
मानव परिवार में,
हम में से कुछ हैं गम्भीर
तो कुछ का जीवन हँसने-बोलने में।

कुछ कहते कि जिया उन्होंने अपना जीवन
पूर्ण गहनता के साथ
दूसरे करते दावा कि वे वास्तव में जीते हैं
सच्चे यथार्थ के साथ।

हमारी त्वचा के रंगों की भिन्नता
कर सकती है स्तब्ध, प्रसन्न और भ्रमित,
भूरा और गुलाबी और मटमैला और कत्थई
नीला और श्वेत और नील-लोहित।

यात्रा की मैंने सात समुद्र की
और घूमी हर देश में,
देखे मैंने दुनिया के सभी आश्चर्य
देखा नहीं साधारण आदमी जग में।

जानती मैं हज़ारों महिलाओं को
जेन और मैरी जेन जैसी,
लेकिन नहीं मिली दो वैसी
जो सचमुच हों एक जैसी।

दर्पण छवि-सी जुड़वाँ भी होती भिन्न
हालाँकि उनके चेहरे मेल खाते,
किन्तु प्रेमियों के होते बिलकुल अलग विचार
साथ-साथ जब लेटे होते।
                                                               
            हम प्रेम करते और खो देते चीन में,
रोते हम इंग्लैंड की बंजर ज़मीन पर,
हँसते और विलाप करते गिनी में,
और फलते-फूलते स्पेनी तटों पर।

हम फिनलैंड में सफलता की तलाश करते,
मेन में जन्मते और मरते,
लघु दृष्टि से हम होते भिन्न-भिन्न
विशाल दृष्टि से हम समान होते।

मुझे स्पष्ट दिखती हैं विषमताएँ
जो हर वर्ग, हर समूह के बीच हैं,
लेकिन मेरे मित्रो, हम विषम होने की अपेक्षा
एक समान ही अधिक हैं।

मेरे मित्रो, हम विषम होने की अपेक्षा
एक समान ही अधिक हैं।

मेरे मित्रो, हम विषम होने की अपेक्षा
एक समान ही अधिक हैं।

मूल अँग्रेज़ी से अनुवाद : बालकृष्ण काबरा ’एतेश’