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मानस-ताल / शिवनारायण / अमरेन्द्र
Kavita Kosh से
हमरोॅ असकरोॅ मोॅन
तोरोॅ प्रतीक्षा में
जानेॅ तेॅ कहिया सें
अनगिनत सपना बुनी रहलोॅ छै।
तारा के पार सरंग के एकान्त
हमरोॅ भीतर रही-रही केॅ
जानेॅ तेॅ कोॅन अस्थोॅ केॅ
बाँह पसारी हसोती रहलोॅ छै,
हम्में की जानौं, ई सब व्यापारोॅ केॅ
गोरैया के ई चुप-चुप मनुहारों केॅ
दूर मंदिरोॅ के मुन्हा सें झांकतेॅ
मेह के साँवरी चित्रकारी केॅ!
बस, एतनाहै टा ज्ञान
कि जबेॅ सरङगोॅ में मेघ घिरतै
चारो दिश छटका छिटकतै
तबेॅ चुपके सें
हमरोॅ मन के मानसरोवर में
तहूं रसवर्षा करी
होने सरस होय जैभौ।