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माना कि इस ज़हान में दो-चार मिले हैं / अजय अज्ञात
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माना भले ही दुनिया में दो-चार मिले हैं
जो भी मिले हैं यार वो दिलदार मिले हैं
बीमार मिले हैं कई लाचार मिले हैं
रोटी को तरसते हुए घर-बार मिले हैं
पूछो न यहाँ तक का सफ़र कैसे कटा है
जीवन के सभी रास्ते दुश्वार मिले हैं
कुछ लोग हैं जो अब भी उसूलों के हैं हामी
कुछ लोग मुझे भीड़ में ख़ुद्दार मिले हैं
उपचार की सब को ही ज़रुरत है यक़ीनन
‘अज्ञात’ सभी इश्क़ के बीमार मिले हैं